सैकड़ों किस्सों में आया
गूलर के फूल का नाम
गली गली चर्चा हुई
गूलर के फूल की
न जाने कितनों ने दुआ माँगी
अगले जन्म में गूलर का फूल हो जाने की
गूलर का फूल बेचारा
फल के अन्दर बन्द
खुली हवा में साँस लेने को तरसता रहा
कीड़ों ने उसमें अपना घर बना लिया
उसकी खुशबू
उसका पराग लूटते रहे
गूलर का फूल दुआ माँगता रहा
ईश्वर अगले जन्म में मुझे कुछ भी बना देना
बस गूलर का फूल मत बनाना।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
गुलर के फूल की पीड़ा की गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंgoolar के ped की भी apni vyatha है... apna dard khud को ही samajh aata है ...
जवाब देंहटाएंजील जी और दिगंबर नासवा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा अपने....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जनाब
हटाएंउत्तम रचना आदरणीय सच ही कहा जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि 🙏
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