मंत्र-मानव
प्रगति कर बना
यंत्र-मानव
नया जमाना
कैसे जिए ईश्वर
वही पुराना
ढूँढे ना मिली
खो गई है कविता
शब्दों की गली
बात अजीब
सेवक हैं अमीर
लोग गरीब
फलों का भोग
भूखों मरे ईश्वर
खाएँ बंदर
क्या उत्तर दें
राम कृष्ण से बन
सीता राधा को
पहाड़ उठे
खाई की गर्दन पे
पाँव रखके
माँ का आँचल
है कष्टों की घूप में
नन्हा बादल
आँखें हैं झील
पलकें जमीं बर्फ
मछली सा मैं
हवा में आके
समझा मछली ने
पानी का मोल
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
कटु सत्य का बहुत ही सार्थक और सुन्दर चित्रण..
जवाब देंहटाएंभाई मैने तो खुद आप से ही सीखी हैं हाइकु, तो तारीफ की करूँ! बहुत ही सुंदर प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंअच्छे हाइकु है धर्मेन्द्र जी
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