हराया है तुफ़ानों को मगर ये क्या तमाशा है
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है।
गरजती है बहुत फिर प्यार की बरसात करती है
ये मेरा और बदली का न जाने कैसा नाता है।
है सूरज रौशनी देता सभी ये जानते तो हैं
अगन दिल में बसी कितनी न कोई भाँप पाता है।
वो ताकत प्रेम में पिघला दे पत्थर लोग कहते हैं
पिघल जाता है जब पत्थर जमाना तिलमिलाता है।
कहाँ से नफ़रतें आके घुली हैं उन फ़िजाओं में
जहाँ पत्थर भी ईश्वर है जहाँ गइया भी माता है।
चला जाएगा खुशबू लूटकर हैं जानते सब गुल
न जाने कैसे फिर भँवरा कली को लूट पाता है।
न ही मंदिर न ही मस्जिद न गुरुद्वारे न गिरिजा में
दिलों में झाँकता है जो ख़ुदा को देख पाता है।
पतंगे यूँ तो दुनियाँ में हजारों रोज मरते हैं
शमाँ पर जान जो देता वही सच जान पाता है।
हैं हमने घर बनाए दूर देशों में बता फिर क्यूँ
मेरे दिल के सभी बैंकों में अब भी तेरा खाता है।
बने इंसान अणुओं के जिन्हें यह तक नहीं मालुम
क्यूँ ऐसे मूरखों के सामने तू सर झुकाता है।
है जिसका काला धन सारा जमा स्विस बैंक लॉकर में
वही इस देश में मज़लूम लोगों का विधाता है।
नहीं था तुझमें गर गूदा तो इस पानी में क्यूँ कूदा
मोहोब्बत ऐसा दरिया है जो डूबे पार जाता है।
कहेंगे लोग सब तुझसे के मेरी कब्र के भीतर
मेरी आवाज में कोई तेरे ही गीत गाता है।
दिवारें गिर रही हैं और छत की है बुरी हालत
शहीदों का ये मंदिर है यहाँ अब कौन आता है।
नहीं हूँ प्यार के काबिल तुम्हारे जानता हूँ मैं
मगर मुझसे कोई बेहतर नजर भी तो न आता है।
मैं तेरे प्यार का कंबल हमेशा साथ रखता हूँ
भरोसा क्या है मौसम का बदल इक पल में जाता है।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
बहुत तीखा व्यंग है ..अच्छी गज़ल
जवाब देंहटाएंkya baat hai ......bahut khubsurat rachna
जवाब देंहटाएंati sundar post........aap kamal ka likhte hai
जवाब देंहटाएंवाह मेरी मन पसंद ग़ज़ल| बधाई डी के जी|
जवाब देंहटाएंआपने तो सुन्दर लिखा..बधाई.
जवाब देंहटाएं'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
यह रचना ग़ज़ल की शास्त्रीयता पर भले खरी न उतरे लेकिन बहुत अच्छी पंक्तियाँ दीं हैं आपने। बधाई!
जवाब देंहटाएंकहाँ से नफ़रतें......
न मंदिर ही न .....
है जिसका सारा धन ....
और भी कुछ
सादर
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
हराया है तुफ़ानों को मगर ये क्या तमाशा है
जवाब देंहटाएंहवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है
मत्ला बहुत प्यारा है.
ग़ज़ल में तक़ाबुले-रदीफ़ का ऐब कहीं कहीं दिखा,इससे बचने की कोशिश करियेगा.
वैसे आपके लेखन की मैं दाद देता हूँ.
डी. के. दि ग्रेट| जियो मेरे दोस्त| एक बार फिर से बधाई|
जवाब देंहटाएंदिवारें गिर रही हैं और छत की है बुरी हालत
जवाब देंहटाएंशहीदों का ये मंदिर है यहाँ अब कौन आता है।
बहुत सटीक व्यंग आज की व्यवस्था पर...सुन्दर अभिव्यक्ति..