एक बहुत पुरानी रचना है आप भी आनंद लीजिए
अवकलन समाकलन
फलन हो या चलन-कलन
हरेक ही समीकरन
के हल में तू ही आ मिली
घुली थी अम्ल क्षार में
विलायकों के जार में
हर इक लवण के सार में
तु ही सदा घुली मिली
घनत्व के महत्व में
गुरुत्व के प्रभुत्व में
हर एक मूल तत्व में
तु ही सदा बसी मिली
थीं ताप में थीं भाप में
थीं व्यास में थीं चाप में
हो तौल या कि माप में
सदा तु ही मुझे मिली
तुझे ही मैंने था पढ़ा
तेरे सहारे ही बढ़ा
हुँ आज भी वहीं खड़ा
जहाँ मुझे थी तू मिली
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
... sundar rachanaa !!!
जवाब देंहटाएंघुली थी अम्ल क्षार में
जवाब देंहटाएंविलायकों के जार में
हर इक लवण के सार में
तु ही सदा घुली मिली
साइंटिफिक शब्दों के साथ मन के भाव यूं उतारे आपने .... बहुत खूब... प्रभावी बन पड़ी है रचना
सुन्दर प्रयोग्।
जवाब देंहटाएंkyaa baat hai sir......bhut hi khubsoorat
जवाब देंहटाएंथीं ताप में थीं भाप में
जवाब देंहटाएंथीं व्यास में थीं चाप में
हो तौल या कि माप में
सदा तु ही मुझे मिली
बहुत खूब ....अच्छा प्रयोग है...निरंतर लेखन के लिए शुभकामनायें
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
wah ustad wah
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