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बुधवार, 17 नवंबर 2010

बस इतना अधिकार मुझे दो

नहीं चाहता साथ तुम्हारे
नाचूँ, गाऊँ, झूमूँ, घूमूँ
नहीं चाहता तुमको देखूँ,
छूँलूँ, कसलूँ या फिर चूमूँ

नहीं चाहता तुम अपना जीवन
दो या फिर प्यार मुझे दो
अंत समय चंदन बन जाऊँ
बस इतना अधिकार मुझे दो

6 टिप्‍पणियां:

  1. आने वाले समय में जिन पक्तियों का सन्दर्भ दिया जाएगा विद्यार्थियों को, उन में शामिल होने की कुव्वत रखने वाली पंक्तियों के रचियता भाई धर्मेन्द्र जी हमारी बधाई स्वीकार करें|

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  2. अंत समय चंदन बन जाऊँ
    बस इतना अधिकार मुझे दो

    वाह वाह वाह वाह्…………इन दो पंक्तियों ने गज़ब कर दिया। दिल मे समा गयीं हैं। बार बार पढा।

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  3. dharmendra bhai

    kya kahu..
    bhaiyaa
    naman aapki lekhni ko. is kavita ne meujhe aisa hi kuch likhne par mazbor kar diya hai .. main aapki antim panktiyo ko apni kisi kavita me use karunga, bura nahi maanna ji

    aapka

    vijay
    poemsofvijay.blogspot.com

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  4. "अंत समय चंदन बन जाऊँ
    बस इतना अधिकार मुझे दो"

    बेहद खूबसूरत !

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जो मन में आ रहा है कह डालिए।