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सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

जिंदगी की दौड़

जो पीते थे
वो पिलाकर

जो खाते थे
वो खिलाकर

जो चोर थे
वो चुराकर

जो तेल लगाते थे
वो तेल लगाकर

जो चालू थे
वो सबको बेवकूफ बनाकर

जिंदगी की दौड़ में आगे निकल गए
और धनवान बन गए

जिनको इनमें से कुछ भी नहीं आता था
वो जिंदगी की दौड़ में बहुत पीछे रह गए
और इंसान बन गए।

1 टिप्पणी:

  1. जिनको इनमें से कुछ भी नहीं आता था
    वो जिंदगी की दौड़ में बहुत पीछे रह गए
    और इंसान बन गए।

    धर्मेन्द्र भाई, बड़ी ही करारी चोट की है आपने चापलूसी पर और साथ ही प्रतिपादित किया है इंसानियत का सिद्धांत| बधाई| आपकी कविता के सम्मान में मेरी दो पंक्तियाँ:-
    जो जी हजूरी कर रहे, वो कामयाबी पा रहे|
    निष्पक्ष जो भी लोग हैं, वो सिरफिरे - नाकाम हैं||

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