जो पीते थे
वो पिलाकर
जो खाते थे
वो खिलाकर
जो चोर थे
वो चुराकर
जो तेल लगाते थे
वो तेल लगाकर
जो चालू थे
वो सबको बेवकूफ बनाकर
जिंदगी की दौड़ में आगे निकल गए
और धनवान बन गए
जिनको इनमें से कुछ भी नहीं आता था
वो जिंदगी की दौड़ में बहुत पीछे रह गए
और इंसान बन गए।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
जिनको इनमें से कुछ भी नहीं आता था
जवाब देंहटाएंवो जिंदगी की दौड़ में बहुत पीछे रह गए
और इंसान बन गए।
धर्मेन्द्र भाई, बड़ी ही करारी चोट की है आपने चापलूसी पर और साथ ही प्रतिपादित किया है इंसानियत का सिद्धांत| बधाई| आपकी कविता के सम्मान में मेरी दो पंक्तियाँ:-
जो जी हजूरी कर रहे, वो कामयाबी पा रहे|
निष्पक्ष जो भी लोग हैं, वो सिरफिरे - नाकाम हैं||