यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण।
तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को /
कम कर देता है समय की गति /
इसे कैद करके नहीं रख पातीं /
स्थान और समय की विमाएँ।
ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में /
ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक /
जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती।
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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रविवार, 24 अक्टूबर 2010
आँवले जैसी हो तुम
आँवले जैसी हो तुम जब तक पास रहती हो खटास बनी रहती है पर जब चली जाती हो और मै संग संग बिताए पलों की याद का पानी पीता हूँ तो धीरे धीरे मीठास घुलने लगती है उन पलों की मेरे मुँह में मेरे तन में मेरे मन में मेरे जीवन में।
उम्दा एहसास............
जवाब देंहटाएंउत्तम कविता !