जवान होता सूरज
जब अपना जादुई रंग रूप
नवयौवना
सुबह को दिखलाता है
तो सुबह शर्म से लाल होकर
उसके मोहपाश में बँधी
खिंचती चली जाती है
और दोनों के प्राण
एक दूसरे में मिल जाते हैं
इस मिलन से सृष्टि होती है दिन की
दिन के प्रकाश से ही धरती पर जीवन चलता है
और इस तरह
सृष्टि के कण कण में
सूर्य और सुबह के
अमर प्रेम की ऊर्जा से
जीवन पलता है।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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