बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

पानी

पानी ने जबसे उसके तन को छुआ है,
तब से पानी बौराया हुआ है,
भागता ही रहा है
दौड़ता ही रहा है
नाली, नाले, नदी, सागर, आसमान, जमीन
और जाने कहाँ कहाँ जा जाकर
उस मादक स्पर्श को
ढूँढता ही फिर रहा है;

बेचारे पानी को क्या पता
ऐसा पागल कर देने वाला स्पर्श
कभी कभी ही मिलता है जिंदगी में
और वो भी बड़ी किस्मत से,
उसके बाद
अस्तित्व रहने तक
तरह तरह के स्पर्शों में
उस स्पर्श को दुबारा पाने की,
लालसा ही रह जाती है बस।

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