कभी-कभी मेरा दिल करता है
ईश्वर के लम्बे-लम्बे बालों को पकड़कर
उसके थोबड़े को सामने लाकर
घूँसे मार मार कर
ईश्वर का थोबड़ा बिगाड़ दूँ
उसके दाँत तोड़ दूँ
उसका सर पकड़कर
दीवाल पर तब तक मारूँ
जब तक कि वह ये न कहे
कि “मुझसे गलती हो गई है
उसकी जान मैंने भूलवश ली है
मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था
मैं समय को फिर उसी बिन्दु पर ले आता हूँ
जहाँ मैंने उसकी जान ली थी
सब कुछ फिर से वैसा हो जाएगा
समय फिर वहीं से आगे बढ़ेगा
बस इस बार मैं उसकी जान नहीं लूँगा।”
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
sach ichchhaay ajib hoti hai........uttam rachana
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