सड़क पर वाहनों की खिड़की के बाहर,
मेरे साथ साथ चलती है,
कविता;
रेलगाड़ी की खिड़की के बाहर,
हरे भरे खेतों के ऊपर,
मेरे साथ भागती है,
कविता;
बोरियत भरी मीटिंगों में,
मेरे मन में गूँजती रहती है,
कविता;
अकेले में अक्सर,
मुझसे बातें करती है,
कविता;
मेरी आत्मा में,
धीरे धीरे घुल रही है,
कविता;
अब मुझे कोई चिन्ता नहीं,
धर्म-अधर्म,
पाप-पूण्य,
स्वर्ग-नर्क की,
क्योंकि मैं कहीं भी जाऊँ,
हमेशा मेरे साथ रहेगी,
कविता।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
संपूर्ण कवितामय!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
अब मुझे कोई चिन्ता नहीं,
जवाब देंहटाएंधर्म-अधर्म,
पाप-पूण्य,
स्वर्ग-नर्क की,
क्योंकि मैं कहीं भी जाऊँ,
हमेशा मेरे साथ रहेगी,
कविता।
सुंदर अभिव्यक्ति .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
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