मेढ़क को अगर,
उबलते हुए पानी में डाल दिया जाय,
तो वह उछल कर बाहर आ जाता है;
मगर यदि उसे डाला जाय,
धीरे धीरे गर्म हो रहे पानी में,
तो उसका दिमाग,
उस गर्मी को सह लेता है,
और मेढ़क उबल कर मर जाता है;
छात्रों को मेढ़क काटकर,
उसके अंगों की संचरना तो समझाई जाती है,
पर उसके खून का यह गुण,
पूरी तरह गुप्त रखा जाता है,
हमारी सरकार द्वारा;
तभी तो हमारा सरकारी तंत्र,
युवा आत्माओं को,
भ्रष्टाचार की धीमी आँच से,
उबालकर मारने में,
इतना सफल है;
कुछेक खुशकिस्मत आत्माएँ ही,
इस साजिश को समझ पाती हैं,
और इससे लड़ने की कोशिश करती हैं,
पर इस गर्म हो रहे पानी से,
लड़ने का कोई फ़ायदा नहीं होता,
इस पर लगे घाव,
पल भर में भर जाते हैं,
और लड़ने वाले आखिर में,
थक कर डूब जाते हैं,
और खत्म हो जाते हैं;
एकाध आत्मा ही,
छलाँग लगाकर,
इससे बाहर निकल पाती है;
नहीं तो आप ही बताइये,
इस देश में किरन बेदी जैसी,
और आत्माएँ क्यों नहीं हैं?
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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