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रविवार, 15 अगस्त 2010

अधूरी कविता

डायरी के पन्नों में पड़ी एक अधूरी कविता,
अक्सर पूछती है मुझसे,
मुझे कब पूरा करोगे?

कभी कभी कलम उठाता हूँ,
पर आसपास का माहौल देखकर डर जाता हूँ,
अगर मैं इस कविता को पूरी कर दूँगा,
तो लोग इसे फाँसी पर लटका देंगे;

ये अधूरी कविता,
मेरी डायरी में ही पड़ी रहे तो अच्छा है,
मेरी डायरी में घुट घुट कर ही सही,
कम से कम अपनी जिंदगी तो जी लेगी,
और मैं पूरी करने के बहाने,
कभी कभी इसे देख लिया करूँगा,
जी भर कर।

1 टिप्पणी:

  1. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं .
    अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (16/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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