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सोमवार, 9 अगस्त 2010

मैं भी इतना बुरा न होता, अगर कहीं वो मेरी होती।

मैं भी इतना बुरा न होता, अगर कहीं वो मेरी होती।

उसके साथ साथ मैं भी नौ दिन का नवरात्री व्रत रखता,
उसे साथ लेकर मैं सुबह-सवेरे मन्दिर जाया करता,
कितना धार्मिक होता मैं भी कहीं वो मेरे साथ जो होती;
मैं भी इतना बुरा न होता, अगर कहीं वो मेरी होती।

घर के कामों मैं साँझ-सवेरे उसका हाथ बँटाता,
थक जाती गर वो फिरतो मैं उसके सर और पाँव दबाता,
लोरी गाकर उसे सुलाता नींद नहीं यदि उसको आती;
मैं भी इतना बुरा न होता, अगर कहीं वो मेरी होती।

जग की सारी सुन्दिरयों को मैं अपनी माँ बहन समझता,
उसको छोड़ किसी को मैं सपनों में भी न देखा करता,
इन्द्रासन हिल जाता इतनी कठिन तपस्या मेरी होती;
मैं भी इतना बुरा न होता, अगर कहीं वो मेरी होती।

उसकी छोटी से छोटी ख्वाहिश यारों मैं पूरी करता,
जग की सारी सुख-सुविधायें मैं उसके कदमों में रखता,
चाँद-सितारे लाकर देता एक बार जो वो कह देती;
मैं भी इतना बुरा न होता, अगर कहीं वो मेरी होती।

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