एक दिन मैंने देखा,
सड़क पर जाता,
लँगड़ाता,
एक कुत्ता,
एक ट्रक तेजी से आता हुआ और,
एक हृदयविदारक चीख,
गूँजती हुई सारे वातावरण में,
मांस के कुछ लोथड़े,
सने हुए रक्त में,
बिखर गए सड़क पर;
आज, लगभग वही दृश्य,
एक नेत्रहीन धीरे-धीरे चलता हुआ,
सड़क पर,
पुकारता हुआ,
“कोई मुझे सड़क पार दो, भाई”
मैं था थोड़ी दूरी पर खड़ा,
सोचा मदद कर दूँ,
तभी मस्तिष्क से आवाज आई,
इतनी दूर क्या जाना,
कोई आसपास का व्यक्ति मदद कर ही देगा,
या फिर वो अपने आप ही कर जाएगा सड़क पार,
तभी दिखाई पड़ी तेजी से आती हुई एक कार,
एक झटके से गूँजी ब्रेकों की चरमराहट,
पर तब तक हो चुकी थी,
एक लोमहर्षक टक्कर,
खून के कुछ छींटे पड़े,
मेरे अन्तर्मन पर,
कई स्वर गूँजे एक साथ,
“पकड़ो, पकड़ो, मारो, मारो”
पर तब तक जा चुकी थी कार,
चारों तरफ थी बस आवाजों की बौछार,
“कैसा जमाना आ गया है”
“कोई देखकर नहीं चल सकता”
“आंखें बन्द करके चलाते हैं वाहन”;
मैं सोच रहा था,
कौन है अंधा,
वो ड्राइवर,
ये दो आंखों वाले,
वो बिन आंखों वाला,
या इन सबसे बढ़कर मैं स्वयं,
जिसने न सिर्फ देखा,
वरन महसूस भी किया,
मगर फिर भी,
नहीं किया कुछ भी,
मेरे अन्तर्मन पर पड़े हुए छींटे खून के,
कुछ पूछ रहे थे मुझसे,
और मेरे पास नहीं था कोई उत्तर,
मैं समझ नहीं पा रहा था,
कौन मरा है कुत्ते की मौत?
वह कुत्ता,
वह अन्धा,
लोगों की मानवता,
या फिर मेरे भीतर ही कहीं कुछ।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना
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