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मंगलवार, 3 अगस्त 2010

जाने कब मैं वह कविता लिख पाऊँगा

जाने कब मैं वह कविता लिख पाऊँगा|

गन्धित बदन तुम्हारा जिसके छंदों में,
बँधा पड़ा हो मन्मथ जिसके बंदों में,
जिसके शब्दों में संसार हमारा हो,
भावों में जिसके बस प्यार तुम्हारा हो,
लिखकर जिसको दीवाना हो जाऊँगा।

जिसको पढ़ कर लगे छुआ तुमने मुझको,
जिसको सुनकर लगे तुम्हीं मेरी रब हो;
छूकर तेरे गम जो पल में पिघला दे,
मेरी आँखों में तेरा आँसू ला दे;
जिसको गाकर मैं तुममें घुल जाऊँगा।

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