मंगलवार, 27 जुलाई 2010

रिक्शा

एक रिक्शा था,
जो मुझे बचपन में स्कूल ले जाया करता था,
रोज सुबह वक्तपर आता था,
सीटी बजाता था,
और मैं दौड़कर उसपर चढ़ जाया करता था,
अच्छा लगता था, दोस्तों के साथ,
उस रिक्शे पर बैठकर स्कूल जाना,
कभी कभी जब वो खराब हो जाता था,
तो पापा छोड़ने जाते थे,
पर पापा के साथ जाने में वो मजा नहीं आता था,
एक अजीब सा रिश्ता बन गया था उस रिक्शे से;

वो रिक्शा अब भी आता है कभी कभी मेरे घर,
पर मैं तो अक्सर परदेश में रहता हूँ,
जब मैं घर जाता हूँ,
तो उसको पता नहीं होता कि मैं आया हूँ,
और जब वो आता है तो मैं परदेश में होता हूँ,
लोग कहते हैं वो कुछ माँगने आता होगा,
लोग नहीं समझ सकते,
एक बच्चे और उसके रिक्शे का रिश्ता,
इस बार मैं कुछ नये कपड़े,
घर पर रख आया हूँ,
घरवालों से कहकर,
वो आये तो दे देना,
क्या करूँ,
जिन्दगी की भागदौड़ में,
मैं इतना ही कर सकता हूँ,
तुम्हारे लिये,
कभी अगर किस्मत ने साथ दिया,
तो मुलाकात होगी।

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