धर्म और जाति अब हमे कुछ नहीं दे सकते,
सिवाय धार्मिक दंगों,
आतंकवाद और प्रेमियों की हत्या के,
धर्म ने जो कुछ देना था दे चुका,
जाति ने जो कुछ देना थी दे चुकी,
अब कुछ नहीं बचा इनके पास देने को,
ये अब समय के अनुसार नहीं चल पाते,
अब इनमें परिवर्तन नहीं होता,
ये तेजी से बदलते युग के साथ नहीं बदल पाते,
ये सड़ने लगे हैं अब,
अब इनसे छुटकारा पाने का वक्त आ गया है,
आओ कुछ को जला दिया जाये,
कुछ को दफना दिया जाय,
इनकी चिता पर फूल रखकर,
इन्हें अन्तिम प्रणाम किया जाये,
इनकी कब्र पर माला रखकर अन्तिम विदा दी जाये,
अब हमें ईश्वर से जुड़ने के लिए,
ना धर्म की आवश्यकता है,
ना ही समाज को चलाने के लिए जाति की।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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