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गुरुवार, 22 जुलाई 2010

मधुमक्खी

वो मधुमक्खी,
जिसके छत्ते में पत्थर मारकर,
एक दिन मैंने उकसाया था,
बदले में उसने मुझे,
अपने डंकों से नहलाया था,
बचने की कोशिश तो बहुत की थी मैंने,
पर कौन बचा है आज तक ऐसे डंकों से,

फिर एक दिन अचानक,
छत्ते में कोई नहीं मिला मुझे,
सारा शहद सूख गया था,
छत्ता उजाड़ हो गया था,
वो छत्ता तो आज भी वहीं है,
पर जब कभी मैं उस राह से गुजरता हूँ,
तो मुझे आज भी महसूस होता है,
उसके डंकों का दर्द,
और याद आ जाती है मुझे,
वो मधुमक्खी।

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