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शनिवार, 17 जुलाई 2010

कवि की कल्पना

कवि की कल्पना,
चीनी को भी घोलती है,
नमक को भी घोलती है,
चीनी और नमक में फर्क नहीं करती,
पानी की तरह होती है,
कवि की कल्पना।

चीनी की अधिक मीठास को कम कर देती है,
नमक को कम नमकीन बना देती है,
नींबू की अत्याधिक खटास को भी कम कर देती है,
शर्बत और शिंकजी में बदलकर,
इन्हें पीने लायक बना देती है,
कवि की कल्पना।

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