कवि की कल्पना,
चीनी को भी घोलती है,
नमक को भी घोलती है,
चीनी और नमक में फर्क नहीं करती,
पानी की तरह होती है,
कवि की कल्पना।
चीनी की अधिक मीठास को कम कर देती है,
नमक को कम नमकीन बना देती है,
नींबू की अत्याधिक खटास को भी कम कर देती है,
शर्बत और शिंकजी में बदलकर,
इन्हें पीने लायक बना देती है,
कवि की कल्पना।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
वाह क्या बात कही है...
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