धर्मान्धता वह कृष्ण विवर है,
जिसमें बहुत सारा अन्धविश्वास का द्रव्य,
मस्तिष्क की थोड़ी सी जगह में इकट्ठा हो जाता है,
और परिणाम यह होता है,
कि प्रेम, दया, ममता की प्रकाश-किरणें भी,
इस कृष्ण विवर से बाहर नहीं निकल पातीं,
और जो भी इस कृष्ण विवर के सम्पर्क में आता है,
वह भी इसके भीतर खिंचकर,
कृष्ण विवर का एक हिस्सा बन जाता है,
इससे बचने का एक ही रास्ता है,
न तो इसके पास जाइये,
और न ही इसे अपने पास आने दीजिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
जो मन में आ रहा है कह डालिए।