आजकल ईमानदारी बढ़ती जा रही है,
क्योंकि जो बेईमानी सब करने लगते हैं,
करने वाले भी और पकड़ने वाले भी,
वो सिस्टम में आ जाती है,
उसमें पकड़े जाने का डर नहीं होता,
और धीरे धीरे हमारी आत्मा भी,
मानने लगती है,
कि वो बेईमानी नहीं है;
और अंतरात्मा की आवाज़ गलत नहीं होती,
ऐसा ज्ञानी लोग कह गये हैं;
तो भाइयों आजकल,
ईमानदारी का दायरा बड़ा होता जा रहा है,
क्योंकि ईमानदारी की नई परिभाषाएँ बन रही हैं,
और बेईमानी का घटता जा रहा है,
तो जल्दी ही,
वह घड़ी आएगी,
जब बेईमानी,
दुनिया से पूरी तरह,
समाप्त हो जाएगी।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
बल्कि ये कहें की दोनों की परिभाषाएं बदल गई है और सोचने के माइने भी बदल गए है....बढ़िया रचना .....
जवाब देंहटाएंबहुत सही!
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