काश! मैं तुम्हारे साथ प्रकाश की गति से चल सकता,
तो वह एक पल,
जब तुमने मेरी आँखों में झाँका था,
आज भी वहीं थमा होता।
काश! मेरे प्यार में,
कृष्ण विवर जैसा आकर्षण होता,
तो बहता समय आज भी वहीं ठहरा होता,
मैं तुम्हारी आँखों में खुद को देखता रहता,
और जब तक मेरी पलकें झपकतीं,
समय का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता,
और हमारा अस्तित्व मिलकर,
आदि ऊर्जा में बदल जाता,
फिर से सृष्टि का निर्माण करने के लिए।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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