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गुरुवार, 8 जुलाई 2010

सड़कें

पहाड़ों की सड़कें,
आगे बढ़ती हैं,
बलखा बलखा कर;
पहाड़ों की खूबसूरती का आनन्द लेती हैं,
मुड़ मुड़ कर;
रास्ते में खड़े पेड़ उन्हें सलाम करते हैं,
झुक झुक कर;
बीच बीच में कुछेक गड्ढे जरूर होते हैं उनमें;
पर वो जाकर खत्म होती हैं देश के उन कोनों में,
जहाँ के लोगों की वो जीवन रेखा हैं।

शहरों की सड़कें चमकदार होती हैं,
एक दम सपाट,
मगर पेड़ तो कहीं कहीं ही दिखते हैं उन्हें,
वो भी गर्व से सीना ताने,
सड़कों की तरफ तो देखते भी नहीं वो,
शहर की सड़कें मुड़ कर पीछे नहीं देखतीं,
बस आगे ही बढ़ती जाती हैं,
किसी बड़ी सड़क में मिलकर,
अपना अस्तित्व खो देने के लिए।

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