बुधवार, 7 जुलाई 2010

भूकम्प

कौन कहता है जिन्दगी में भूकम्प कभी कभी आते हैं,
हर रात मैं सामना करता हूँ,
एक भूकम्प का,
हर रात तुम्हारी यादों के भूकम्प से,
मेरे तन-मन का कोना कोना हिल जाता है,
मेरा कोई न कोई हिस्सा रोज टूट जाता है,
विज्ञान कहता है,
भूकम्प में जो जितना अधिक दृढ़ होता है,
उतनी ही जल्दी टूट जाता है,
काश! कि मैंने भी थोड़ी सी हिम्मत,
थोड़ी सी दृढ़ता दिखाई होती,
तो अगर तुम न भी मिलतीं तो भी,
एक ही बार में टूटकर बिखर गया होता,
कम से कम ये रोज रोज का दर्द तो न झेलता,
शायद ये मेरे समझौतों की,
मेरे झुकने की सजा है,
कि मैं थोड़ा थोड़ा करके रोज टूट रहा हूँ,
और जाने कब तक मैं यूँ ही,
तिल तिल करके टूटता रहूँगा।

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