बड़ा मुश्किल है,
तुम पर कविता लिखना,
विज्ञान की प्रयोगशालाओं में,
कविता कहाँ बनती है?
परखनलियों में,
अम्लों में,
क्षारों में,
रासायनिक अभिक्रियाओं में,
कविता कहाँ बनती है?
तरह तरह की गैसों की दुर्गन्ध में,
भावनाहीन प्रयोगों में,
कविता कहाँ बनती है?
पर क्या करूँ मैं,
उन्हीं निर्जीव प्रयोगशालाओं में,
तो बिखरी पड़ी हैं तुम्हारी यादें,
तुम्हारे हाथ की छुवन,
जैसे अम्ल छू गया हो शरीर से,
आज भी सिहर उठता है मेरे हाथ का वह भाग,
तुम्हारी खनकती हँसी,
जैसे बीकर गिरकर टूट गया हो मेरे हाथ से,
तुम्हारी साँसों की आवृत्ति से,
मेरी साँसों का बढ़ता आयाम,
हमारे प्राणों का अनुनाद,
हमारी आँखों की क्रिया प्रतिक्रिया,
आँखों की अभिक्रियाओं से बढ़ता तापमान,
कहाँ से लाऊँ मैं उपमान,
वैज्ञानिक उपमानों से कहाँ बनती है कविता?
लगता था जैसे हमारे शरीरों के बीच का गुरुत्वाकर्षण,
किसी दूसरे ही नियम का पालन करता है,
कोई और ही सूत्र लगता है,
इस गुरुत्वाकर्षण की गणना करने हेतु,
जो शायद अभी खोजा ही नहीं गया है,
और शायद कभी खोजा जाएगा भी नहीं।
कुछ चीजें ना ही खोजी जाएँ तो अच्छा है,
कुछ कविताएँ ना ही लिखी जाएँ तो अच्छा है,
और कुछ कहानियाँ,
अधूरी ही रह जाएँ तो अच्छा है।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
ankahi kavitaon ke naam ek kavita....!
जवाब देंहटाएंbadi mohak hoti hai anchui , ankhoji kuch mansik kandarayen-
jaha nayano se beh jati hai sarita...!!
nice poem !!!!!
subhkamnayen,
anupama
वज्ञानिक भाषा में लिखी सुन्दर कविता
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