बर्फ गिरती है तो कितना अच्छा लगता है,
उन लोगों को,
जो वातानुकूलित गाड़ियों से आते हैं,
और गर्म कमरों में घुस जाते हैं,
फिर निकलते हैं गर्म कपड़े पहनकर,
खेलने के लिए बर्फ के गोले बना बनाकर,
गर्म धूप में,
कोई ये नहीं जानता,
कि उस पर क्या बीतती है,
जो एक छोटी सी पत्थरों से बनी कोठरी में,
जिसकी छत लोहे की पुरानी चद्दरों से ढकी होती है,
गलती हुई बर्फ के कारण,
गिरते हुए तापमान में,
एक कम्बल के अन्दर,
रात भर ठण्ड से काँपता रहता है,
दिन भर के काम से थका होने के कारण,
नींद तो आती है,
पर अचानक कम्बल के एक तरफ से,
थोड़ा उठ जाने से,
लगने वाली ठण्ड की वजह से,
नींद खुल जाती है,
सारे अंगों को कम्बल से ढककर,
वह फिर सोने की कोशिश करने लगता है,
उस बर्फ को कोसते हुए,
जिसे सड़कों पर से हटाते हटाते,
दिन में उसके हाथ पाँव सुन्न हो गये थे,
ताकि वातानुकूलित गाड़ियों को आने जाने का,
रास्ता मिल सके।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
उम्दा कविता
जवाब देंहटाएंNaam to bahut suna tha par "sajjan" ki kavita padhne ka mauka aaj pehli bar mila........
जवाब देंहटाएंbahut khoob
prasangik kavita hai........dil ko choo liyaa............
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