काश यादों को करीने से लगा सकता मैं,
छाँट कर तेरी बाकी सब को हटा सकता मैं।
वो याद जिसमें लगीं तुम मेरी परछाईं थीं,
काश उस याद की तस्वीर बना सकता मैं।
दिन-ब-दिन धुँधली हो रही तेरी यादों की किताब,
काश हर पन्ने को सोने से मढ़ा सकता मैं।
वो पन्ना जिसपे कहानी लिखी जुदाई की,
काश उस पन्ने का हर लफ्ज मिटा सकता मैं।
किताब-ए-याद को पढ़ पढ़ के सजदा करता हूँ,
काश ये आयतें तुझको भी सुना सकता मैं।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
सुन्दर रचना है।
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