मेरा नन्हा गुलाब,
भँवरे की तरह,
आँगन की हर फूल पत्ती को,
छेड़ता फिरता है,
अपनी गन्धित-हँसी से,
आँगन के हर कोने को,
महकाता फिरता है,
अपनी शरारतों से
आँगन के चप्पे चप्पे में,
जान डाल देता है,
अपने तोतली वाणी से
सारे आँगन को,
गुँजा देता है,
खुशियों के खजाने से,
खुशियाँ लुटाता रहता है,
सारे घर में,
और मुझे यही चिन्ता लगी रहती है,
कहीं वह काँटों की संगति में न पड़ जाय,
कहीं काँटे न चुभ न जाएँ,
मेरे नन्हें गुलाब की पंखुड़ियों में,
क्योंकि आज कल तो,
जहरीले काँटे,
हर जगह उग आते हैं,
आँगन में भी।
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