मेरा नन्हा गुलाब,
भँवरे की तरह,
आँगन की हर फूल पत्ती को,
छेड़ता फिरता है,
अपनी गन्धित-हँसी से,
आँगन के हर कोने को,
महकाता फिरता है,
अपनी शरारतों से
आँगन के चप्पे चप्पे में,
जान डाल देता है,
अपने तोतली वाणी से
सारे आँगन को,
गुँजा देता है,
खुशियों के खजाने से,
खुशियाँ लुटाता रहता है,
सारे घर में,
और मुझे यही चिन्ता लगी रहती है,
कहीं वह काँटों की संगति में न पड़ जाय,
कहीं काँटे न चुभ न जाएँ,
मेरे नन्हें गुलाब की पंखुड़ियों में,
क्योंकि आज कल तो,
जहरीले काँटे,
हर जगह उग आते हैं,
आँगन में भी।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
जो मन में आ रहा है कह डालिए।