महुवा सारी रात रोता रहा,
उसके आँसू गिरते रहे,
और पेड़ के नीचे उसके आँसुओं का गद्दा बिछ गया,
सुबह लोग आये,
और उन्होंने सारे आँसू बीन लिये,
फिर उन आँसुओं का हलवा बनाया,
और सबने खूब चटखारे लेकर खाया,
किसी ने कभी महुवे से,
उसका हाल चाल जानने की कोशिश नहीं की,
उसके रोने का कारण नहीं पूछा,
उसका दुख नहीं बाँटा,
महुवा आज भी रोता है,
और लोग उसके आँसुओं का हलवा खाते हैं,
बिना उसके दुख दर्द का कारण जानने की कोशिश किये।
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