महुवा सारी रात रोता रहा,
उसके आँसू गिरते रहे,
और पेड़ के नीचे उसके आँसुओं का गद्दा बिछ गया,
सुबह लोग आये,
और उन्होंने सारे आँसू बीन लिये,
फिर उन आँसुओं का हलवा बनाया,
और सबने खूब चटखारे लेकर खाया,
किसी ने कभी महुवे से,
उसका हाल चाल जानने की कोशिश नहीं की,
उसके रोने का कारण नहीं पूछा,
उसका दुख नहीं बाँटा,
महुवा आज भी रोता है,
और लोग उसके आँसुओं का हलवा खाते हैं,
बिना उसके दुख दर्द का कारण जानने की कोशिश किये।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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