पृष्ठ

मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

साहबगीरी के दोहे

साहब बोलें आम को, अगर भूल से नीम।
फर्ज तुम्हारा आम को, काट उगाओ नीम॥

साहब बोलें गर सखे, सोलह दूनी आठ।
सदा याद रखना उसे, बने रहेंगे ठाठ॥

साहब जब जब हँस पड़ैं, तुम भी हँस दो साथ।
बात हँसी की हो सखे, या हो दुख की बात॥

साहब को उर में धरो, जपो साब का नाम।
साहब खुश गर हो गए, बनैं बीगड़े काम॥

जय हो साहब बोलि के, सदा नवाओ माथ।
जो फल साहब दे सकें, नहीं देत रघुनाथ॥

साहब के गुण-गान से, धुलैं आप के पाप।
बाल न बाँका कर सकै, ‘विजीलेन्स’ का बाप॥

साहब को सूचित करो, हर छोटी सी बात।
काम करो या ना करो, कौन पूछने जात॥

आगे बढ़ते जाओगे, कभी न छोड़ो हाथ।
बाथरूम में भी सखे, जाओ साब के साथ॥

कितना भी तुम कर मरो, हो जाओगे फेल।
सुबह-शाम गर साब को, नहीं लगाया तेल॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जो मन में आ रहा है कह डालिए।