प्याज! क्यों रुलाता है मुझे तू आज भी।
अब तक तो मुझे आदत पड़ जानी चाहिए थी;
बिना रोये,
तुझे बर्दाश्त करने की हिम्मत आ जानी चाहिए थी;
पर तुझमें कुछ ऐसी बात है,
कि जब जब भी तुझे काटा जाता है,
काटने वाले की आँखों में आँसू,
तू ले ही आता है;
तुझे देखकर यही लगता है,
कि सारे घाव नहीं भर पाता समय भी,
प्याज! तू रुला देता है मुझको आज भी।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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