पृष्ठ

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

तेरा रूप

फूल सा भी, शूल सा भी, मधु सा भी, दूध सा भी,
जल सा, अनल सा भी प्रिये तेरा रूप है;
आग ये लगाता भी है, आग ये बुझाता भी है,,
चैन लेके चैन देता, अजब-अनूप है।
युद्ध शान्ति दोनों को ही, जन्म ये दे सकता है,
कभी घनी छाँव है, तो कभी तीखी धूप है;
भागकर इससे न कोई पार पा सका है,
पार वही होता है, जो इसमें जाता डूब है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जो मन में आ रहा है कह डालिए।