फूल सा भी, शूल सा भी, मधु सा भी, दूध सा भी,
जल सा, अनल सा भी प्रिये तेरा रूप है;
आग ये लगाता भी है, आग ये बुझाता भी है,,
चैन लेके चैन देता, अजब-अनूप है।
युद्ध शान्ति दोनों को ही, जन्म ये दे सकता है,
कभी घनी छाँव है, तो कभी तीखी धूप है;
भागकर इससे न कोई पार पा सका है,
पार वही होता है, जो इसमें जाता डूब है।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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