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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

ये रात निगोड़ी, बीतती हि नहीं

ये रात निगोड़ी, बीतती हि नहीं।

मैं जाग रहा हूँ, नभ को ताक रहा हूँ,
है बेशर्म चाँद ये, जाता हि नहीं,
ये रात निगोड़ी, बीतती हि नहीं।

करवट बदल बदल, है पीठ रही जल,
हैं तारे मुझपे हँसते, मुँह छिपा कहीं,
ये रात निगोड़ी, बीतती हि नहीं।

कल आ वो जाएगी, संग नींद लायेगी,
फिर कभी चाँद-तारों को देखूँगा नहीं,
पर रात निगोड़ी, बीतती हि नहीं।

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