यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण।
तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को /
कम कर देता है समय की गति /
इसे कैद करके नहीं रख पातीं /
स्थान और समय की विमाएँ।
ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में /
ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक /
जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती।
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
स्मृति
पल में टूटेंगे, ये जानते लोग सभी हैं; रेत के घरौंदे, बनाते वो फिर भी हैं।
माना प्रकृति मिटा सकती है, नर की निर्मिति; पर मिटा नहीं सकती, उस नन्हें घर की स्मृति।
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