पल में टूटेंगे,
ये जानते लोग सभी हैं;
रेत के घरौंदे,
बनाते वो फिर भी हैं।
माना प्रकृति मिटा सकती है,
नर की निर्मिति;
पर मिटा नहीं सकती,
उस नन्हें घर की स्मृति।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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