ऐ ख़बर बेख़बर!
बुधिया लुटती रही, फुलवा घुटती रही,
तू सिनेमा, सितारों में उलझी रही,
जाके लोटी तु मंत्री के, नेता के घर,
क्या कहूँ है गिरी आज तू किस कदर;
ऐ ख़बर बेख़बर!
सच को समझा नहीं, सच को जाना नहीं,
झूठ को झूठ भी तूने माना नहीं,
जो बिकी, है बनी, आज वो ही खबर,
है टँगा सत्य झूठों की दीवार पर;
ऐ ख़बर बेख़बर!
भूत प्रेतों को दिन भर दिखाती रही,
लोगों का तू भविष्यत बताती रही,
आम लोगों पे क्या गुजरी है, आज, पर,
ये न आया तुझे, है कभी भी नजर;
ऐ ख़बर बेख़बर!
तू थी खोजी कभी, आज मदहोश है,
थी कभी साहसी, आज बेजोश है?
बन भिखारी खड़ी है हर एक द्वार पर,
कोई दे दे कहीं चटपटी इक ख़बर;
ऐ ख़बर बेख़बर!
उठ जगा आग तुझमें जो सोई पड़ी,
आग से आग बुझने की आई घड़ी,
काट तू गर्दन-ए-झूठ की इस कदर,
जुर्म खाता फिरे ठोकरें दर-बदर;
ऐ ख़बर बेख़बर!
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