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रविवार, 22 नवंबर 2009

हाय मेरा जीवन निःसार!

हाय मेरा जीवन निःसार!

 

बीत गया जब मेरा यौवन,

उतर गया सारा पागलपन,

फिर जब मिला वही सूनापन,

भटकने लगा फिर प्यासा मन,

तब जाकर मालूम हुआ सच क्या था मेरे यार,

मैं यौवन के पागलपन को समझे था यह प्यार,

हाय मेरा जीवन निःसार!

 

मैं समझा था उसके मन में,

उसके जीवन में कन-कन में,

मैं उसके नयनों में, दिल में,

प्राणों के रिलमिल-झिलमिल में,

उतर गया उसके नयनों से,

यौवन का पागलपन जब से,

नेत्रों में पहले सी ही थी प्यास प्यार की यार,

मैं यौवन के पागलपन को समझे था यह प्यार,

हाय मेरा जीवन निःसार!

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