मुझसे दूर ही रहना, मेरे पास न आना।
तूफान भी मेरे आँगन में, मृदु झोंके सा लहराता है,
दिनकर भी नन्हें बालक सा हो मचल-मचल इठलाता है,
सागर को गागर में भरकर, अपने आँगन में रखता हूँ,
ऐसे जाने कितने त्रिभुवन, मैं रोज बनाया करता हूँ,
मतवाली हो जाओगी, यदि आँशिक भी मुझको जाना,
मुझसे दूर ही रहना, मेरे पास न आना।
मैं सागर को मरूथल के वक्षस्थल में खोजा करता हूँ,
रवि के भीतर होगा हिमनिधि, अक्सर मैं सोंचा करता हूँ,
है चिता भस्म में मैंने पायी नवजीवन की चिंगारी,
हूँ देख चुका मैं मध्यरात्रि में दिनकर को कितनी बारी,
प्रेयसि मैं कवि हूँ,, घातक होगा, मुझसे प्रीत लगाना,
मुझसे दूर ही रहना, मेरे पास न आना।
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