देवी तुम जाओ मन्दिर में।
मेरे घर में क्यों आओगी?
मुझ गरीब से क्या पाओगी?
धूप, द्वीप, नैवेद्य, फूल, फल,
स्वर्ण-मुकुट, पावन-गंगाजल,
पीताम्बर औ’ वस्त्र रेशमी,
मेरे पास नहीं ये कुछ भी,
कैसे रह पाओगी सोंचो, तुम मेरे छोटे से घर में?
देवी तुम जाओ मन्दिर में।
मेरे श्रद्धा सुमनों में देवि,
है रंग नहीं, है गंध नहीं,
है गागर प्रेम भरी उर में,
पर बुझा सकेगी प्यास नहीं,
हैं पूजा के स्वर आँखों में,
पर है उनमें आवाज नहीं,
कैसे पढ़ पाओगी भावों को, उठते जो मेरे उर में?
देवी तुम जाओ मन्दिर में।
तुमको भाती है उपासना,
लोगों का कातर हो कहना,
"देवी ये मुझको दे देना,
देवी उससे वो ले लेना,
देवी इसको अच्छा करना,
उससे मेरी रक्षा करना,"
कैसे मांगोगी तुम मुझसे, छोटी छोटी चीजें घर में?
देवी तुम जाओ मन्दिर में।
आपके विचार देवी तक पहुंचे ऐसी शुभकामनाओं के साथ स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लिये साधुवाद स्वीकारें....
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