साहब बोले,
"नींबू मीठा होता है"
मैं बोला, "हाँ जी"।
साहब बोले,
"चीनी फीकी होती है"
मैं बोला, "हाँ जी"।
साहब बोले,
"मिर्ची खट्टी होती है"
मैं बोला, "हाँ जी"।
साहब बोले,
"मैं बनूँगा एम डी?"
मैं बोला, "हाँ जी"।
मैं बोला, "सर
दस दिन की छुट्टी
है मुझे लेनी"।
"जा अब छुट्टी,
बड़ा काम है किया"
साहब बोले।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
ATI SUNDAR .. DIL KHUSH HO GYA BANDOO ...KYA KAS KE CHOT KI HAI LALFEETASHAHON PAR .. MUJHSE KABHI MULAKAT KARNI HO TO "SHABDATEET YA NAGBAL BLOG SPOT PAR AANA" ACHHA LAGEGA
जवाब देंहटाएंमैं बोला, "सर
जवाब देंहटाएंदस दिन की छुट्टी"।
"जा
साहब बोले।