बुधवार, 26 जून 2024

ग़ज़ल: जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में

बह्र: 1222 1222 122
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जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में
वो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी में

दिखाई ही न दें मुफ़्लिस जहां से
न हो इतनी बुलंदी बंदगी में

दुआ करना ग़रीबों का भला हो
भलाई है तुम्हारी भी इसी में

अगर है मोक्ष ही उद्देश्य केवल
नहीं कोई बुराई ख़ुदकुशी में

यही तो इम्तिहान-ए-दोस्ती है
ख़ुशी तेरी भी हो मेरी ख़ुशी में

उतारो या तुम्हें अंधा करेगी
रहोगे कब तलक तुम केंचुली में

जलें पर ख़ूबसूरत तितलियों के
न लाना आँच इतनी टकटकी में

सियासत, साँड, पूँजी और शुहदे
मिलें अब ये ही ग़ालिब की गली में

बहुत बीमार हैं वो लोग जिनको
महज एक जिस्म दिखता षोडशी में

अगरबत्ती हो या सिगरेट दोनों
जगा सकते हैं कैंसर आदमी में

गिरा लेती है चरणों में ख़ुदा को
बड़ी ताकत है ‘सज्जन’ जी मनी में

रविवार, 7 जनवरी 2024

ग़ज़ल: चोर का मित्र जब से बना बादशाह

बह्र: 212 212 212 212

चोर का मित्र जब से बना बादशाह
चोर को चोर कहना हुआ है गुनाह

वो जो संख्या में कम थे वो मारे गए
कुछ गुनहगार थे शेष थे बेगुनाह

आज मुंशिफ के कातिल ने हँसकर कहा
अब मेरा क्या करेंगे सुबूत-ओ-गवाह

खून में उसके सदियों से व्यापार है
बेच देगा वतन वो हटी गर निगाह

एक बंदर से उम्मीद है और क्या
मारता है गुलाटी करो वाह वाह

एक मौका सुनो फिर से दे दो उसे
जो बचा है उसे भी करे वो तबाह

शनिवार, 16 सितंबर 2023

ग़ज़ल: होता है इंक़िलाब सदा इंतिहा के बाद

ज़ालिम बढ़ा दे ज़ुल्म ज़रा हर ख़ता के बाद
होता है इंक़िलाब सदा इंतिहा के बाद

किसने बदल दिया है ये कानून देश का
होने लगी है जाँच यहाँ अब सज़ा के बाद

बीमारियों से देश बचा लोगे जान लो
करती असर है ख़ूब दुआ पर दवा के बाद

जिसने भी तप किया उसे देवत्व मिल गया
इंसान कौन-कौन बना देवता के बाद?

ऐसा विकास भी न हमें आप दीजिए
मिलता सभी को जैसे ख़ुदा पर कज़ा के बाद

गुरुवार, 3 अगस्त 2023

नवगीत: धुँआँ उठा है नफ़रत का

पास आ गया है बेहद
जब से चुनाव फिर संसद का
राजनीति की चिमनी जागी
धुँआँ उठा है नफ़रत का

आहिस्ता-आहिस्ता
सारी हवा हो रही है जहरीली
काले-काले धब्बों ने
ढँक ली है नभ की चादर नीली

वोटर बेचारा
मोहरा भर है
पूँजी की हसरत का

धर्म-जाति का शीतल जल अब
धीरे-धीरे फिर गरमाया
बढ़ती रही अगन तो
जल जायेगी मजलूमों की काया

जनता को
अनुमान नहीं है
आने वाली आफ़त का

भगवा हो या हरे रंग का
विष तो आख़िर विष होता है
नागनाथ या साँपनाथ का
मानव ही आमिष होता है

देश अखाड़ा
घर-घर कुश्ती
देख तमाशा ताक़त का

गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

नवगीत: नफ़रत का पौधा

महावृक्ष बनकर लहराता
नफ़रत का पौधा

पत्ते हरे फूल केसरिया
लाल-लाल फल आते
प्यास लहू की लगती जिनको
आकर यहाँ बुझाते

सबसे ज्यादा फल खाने की
चले प्रतिस्पर्द्धा

किसमें हिम्मत इसे काट दे
उठा प्रेम की आरी
इसकी रक्षा में तत्पर है
वानर सेना सारी

कैसे-कैसे काम कराये
निरी अंधश्रद्धा

पंखों वाले बीज हुये हैं
उड़-उड़ कर जायेंगे
भारत के कोने-कोने में
नफ़रत फैलायेंगे

लोग लड़ेंगे
लोग मरेंगे
रोयेगी वसुधा

रोपा इसको राजनीति ने
लेकिन खाद और पानी
वो देते जिनके घर बैठी
रक्तकमल पर लक्ष्मी

जनता मूरख समझ न पाये
यह गोरखधंधा

रविवार, 26 मार्च 2023

ग़ज़ल: कौन बताए बेचारी को पगली तू ख़तरे में है


22 22 22 22 22 22 22 2

जनता समझ रही बस पूँजी का जादू ख़तरे में है
कौन बताए बेचारी को पगली तू ख़तरे में है

मालिक निकला चोर उचक्का दुनिया ने मुँह पर थूका
नौकर बोल रहा मेरा सोना बाबू ख़तरे में है

बेच दिया उपवन माली ने कब का अब तो ये लगता
बंधन में हैं फूल और उनकी ख़ुश्बू ख़तरे में है

झेल रहे इस कदर प्रदूषण मिट्टी, पानी और हवा
खतरे में हैं सारे मुस्लिम हर हिन्दू खतरे में है

इनके बिन सारी दुनिया सचमुच नीरस हो जाएगी
भाईचारा, प्यार, वफ़ा इनका जादू ख़तरे में है

बोझ उठाकर पूंजी सत्ता का बेचारा वृद्ध हुआ
मारा जाएगा `सज्जन’ अब तो टट्टू ख़तरे में है

बुधवार, 1 मार्च 2023

घटना: प्रिय कवि से मुलाकात

 



आज प्रिय कवि एवं परम प्रिय मित्र गीत चतुर्वेदी से पुस्तक मेले में हिन्द युग्म के स्टाल पर भेंट हुई। गीत चतुर्वेदी उन चार व्यक्तियों में से एक हैं जिन्हें मैंने अपना उपन्यास समर्पित किया है। आज उन्हें अपने उपन्यास की प्रति भेंट की एवं काफी देर उनसे बातचीत हुई।

बुधवार, 4 जनवरी 2023

नवगीत: जीवन की पतंग


प्यार किसी का बनता जब-जब
लंबी पक्की डोर
जीवन की पतंग छू लेती
तब-तब नभ का छोर

यूँ तो शत्रु बहुत हैं नभ में
इसे काटने को
तिस पर तेज हवा आती है
ध्यान बाँटने को

ऐसे पल में प्रीत जरा सा
देती है झकझोर

डोर कटी तो
अनियंत्रित हो जाने कहाँ गिरेगी
मिल जाएगी कहीं धूल में
या तरु पर लटकेगी

प्रेम डोर बिन
ये बेचारी
है बेहद कमजोर

बने संतुलन, रहे हौसला
तो सब कुछ है मुमकिन
कभी ढील देनी पड़ती तो
सख्ती के भी कुछ दिन

उड़ती बिना प्रयत्न कभी तो
लेती कभी हिलोर

मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

नवगीत: मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल में

मैना बैठी सोच रही है
पिंजरे के दिल में

मिल जाता है दाना पानी
जीवन जीने में आसानी
सुनती सबकी बात सयानी
फिर भी होती है हैरानी

मुझसे ज्यादा ख़ुश तो
चूहा है अपने बिल में

जब तक बोले मीठा-मीठा
सबको लगती है ये सीता
जैसे ही कहती कुछ अपना
सब कहते बस चुप ही रहना

अच्छी चिड़िया नहीं बोलती
ऐसे महफ़िल में

बहुत सलाखों से टकराई
पर पिंजरे से निकल न पाई
चला न कुछ भी जादू टोना
टूट गया है पंख सलोना

जाने किसने 
इतनी हिम्मत
भर दी बुजदिल में

सोमवार, 14 नवंबर 2022

ग़ज़ल: या बिन लादेन होता है या आसाराम होता है

बह्र : 1222 1222 1222 1222


या बिन लादेन होता है या आसाराम होता है
सभी धर्मों का आख़िर में यही अंजाम होता है


बचा लो संस्कृति अपनी बचा लो सभ्यता अपनी
सदा आतंकवादी का यही पैगाम होता है


है ये दुनिया उसी की झूट जो बोले सलीके से
यहाँ सच बोलने वाला सदा नाकाम होता है


जहाँ जो धर्म बहुसंख्यक वहीं क्यों है वो ख़तरे में
यहूदी, बौद्ध, हिन्दू तो कहीं इस्लाम होता है


जिसे पकड़ा गया हो बस वही बदनाम है ‘सज्जन’
वगरना कौन धर्मात्मा यहाँ निष्काम होता है