यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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गुरुवार, 23 दिसंबर 2021
नवगीत : पानी और पारा
पूछा मैंने पानी से
क्यूँ सबको गीला कर देता है
पानी बोला
प्यार किया है
ख़ुद से भी ज़्यादा औरों से
इसीलिये चिपका रह जाता हूँ
मैं अपनों से
गैरों से
हो जाता है गीला-गीला
जो भी मुझको छू लेता है
अगर ठान लेता
मैं दिल में
पारे जैसा बन सकता था
ख़ुद में ही खोया रहता तो
किसको गीला कर सकता था?
पारा बाहर से चमचम पर
विष अन्दर-अन्दर सेता है
वो तो अच्छा है
धरती पर
नाममात्र को ही पारा है
बंद पड़ा है बोतल में वो
अपना तो ये जग सारा है
मेरा गीलापन ही है जो
जीवन की नैय्या खेता है
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंसराहनीय।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबेहतरीन रचना 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंअगर ठान लेता
जवाब देंहटाएंमैं दिल में
पारे जैसा बन सकता था
ख़ुद में ही खोया रहता तो
किसको गीला कर सकता था?
बहुत ही बेहतरीन बात कही!
उम्दा सृजन आदरणीय सर!
बहुत बहुत धन्यवाद
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