रविवार, 1 मई 2011

ग़ज़ल :पर खुशी से फड़फड़ाते आज सारे गिद्ध देखो

पर खुशी से फड़फड़ाते आज सारे गिद्ध देखो
फिर से उड़के दिल्ली जाते आज सारे गिद्ध देखो ॥१॥

रोज रोज खा रहे हैं नोच नोच भारती को
हड्डियों से घी बनाते आज सारे गिद्ध देखो ॥२॥

श्वान को सियासती गली के द्वार पे बिठाके
गर्म गोश्त मिल के खाते आज सारे गिद्ध देखो ॥३॥

आसमान से अकाल-बाढ़ देखते हैं और
लाशों का कफ़न चुराते आज सारे गिद्ध देखो ॥४॥

जल रहा चमन हवा में उड़ रहे हैं खाल, खून
इनकी दावतें उड़ाते आज सारे गिद्ध देखो ॥५॥

11 टिप्‍पणियां:

  1. आज की व्यवस्था पर बहुत सटीक और सार्थक टिप्पणी..बहुत सुन्दर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक टिप्पणी..बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  3. सार्थक पोस्ट सुन्दर अभिव्यक्ति,आभार......

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह क्या ग़ज़ल है धर्मेन्द्र भाई| आनंद आ गया पढ़ कर|

    हिंद युग्म प्रतियोगिता में पुरस्कृत होने के लिए बहुत बहुत बधाई.........

    जवाब देंहटाएं
  5. रोज रोज खा रहे हैं नोच नोच भारती को
    हड्डियों से घी बनाते आज सारे गिद्ध देखो ॥२॥


    व्यवस्था पर गहरी चोट करती अच्छी गज़ल

    जवाब देंहटाएं
  6. वर्तमान सन्दर्भ में सटीक है. सुन्दर है. लीना मल्होत्रा

    जवाब देंहटाएं
  7. कैलाश जी, अना जी, सुनील जी, नवीन भाई, संगीता जी, लीना जी एवं अलबेलाखत्री जी, रचना पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  8. जल रहा चमन हवा में उड़ रहे हैं खाल, खून
    इनकी दावतें उड़ाते आज सारे गिद्ध देखो !
    ..
    एक शानदार और कवि धर्म का निर्वाह करती हुई प्रस्तुति !
    बधाई हो धर्मेन्द्र जी

    जवाब देंहटाएं
  9. aisi bevakoofi ki gazal likhkar apne ko shyar mat kaho moongfali becho voh theek rahega

    जवाब देंहटाएं
  10. aisi bevakoofi ki gazal likhkar apne ko shyar mat kaho moongfali becho voh theek rahega

    जवाब देंहटाएं

जो मन में आ रहा है कह डालिए।